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Story-story in hind Greed is the cause of destruction


                             लोभ विनाश का कारण है

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एक नगर में एक सन्यासी रहता था। वह नगर में भिक्षा माँगकर गुजारा करता था। भिक्षा में मिले अन्न में से जो बच जाता उसे सोते समय अपने भिक्षा-पात्र में रखकर खूँटी पर टाँग देता था। 
सवेरे वह इस बचे हुए अन्न को मंदिर में सफाई करने वालों में बाँट देता था।
एक दिन उस मंदिर में रहने वाले चूहों ने आकर अपने राजा से कहा- हे स्वामी इस मंदिर का पुजारी रोज रात को बहुत सारे पकवान अपने भिक्षा-पात्र में रखकर खूँटी पर टाँग देता है। 
आप आहार के लिए व्यर्थ ही इधर-उधर भटकते हैं। हम तो उस पकवान तक पहुँच नहीं पाते किंतु आप तो समर्थ हैं। 
आप उस भोजन तक पहुँच सकते हैं। इस भिक्षा-पात्र पर चढ़कर आप पकवान का आनंद लीजिए। आप चलेंगे तो हमें भी आसानी से पकवान का आनंद मिल जाएगा।

यह सुनकर चूहों का राजा झुंड के साथ वहाँ जा पहुंचा जहाँ खूँटी पर भिक्षा-पात्र टँगा हुआ था। वह एक ही उछाल में खूँटी पर टँगे भिक्षा-पात्र पर जा चढ़ा। 
इसके बाद उसने पात्र में रखे स्वादिष्ट पकवान को नीचे गिरा दिया।

सभी चूहों ने पेट भरकर पकवान खाया। और चूहे राजा ने भी पेट भरकर भोजन किया। 
इस प्रकार वह हर रात अन्य चूहों को पकवान खिलाया करता और स्वयं भी खाता।

सन्यासी अपनी ओर से पूरी तरह सावधान रहता और चूहों को भगाने की पूरी कोशिश करता। लेकिन जैसे ही उसे नींद आती चूहो के राजा अपनी सेना लेकर वहाँ पहुँच जाता और भिक्षा-पात्र में रखे हुए भोजन को चट कर जाता।

सन्यासी ने तंग आकर एक दिन भोजन की रक्षा करने के लिए एक उपाय किया। वह एक फटा हुआ बाँस ले आया और सोते समय वह उसे जोर-जोर से भिक्षा-पात्र पर पटकता रहता। इससे चूहों के भोजन में बाधा पड़ी। कितनी ही बार वे चोट के डर से बिना खाए ही भाग जाते। 
एक दिन सन्यासी का एक मित्र उसका मेहमान बनकर आया। रात को दोनों भोजन करके लेट गए। मित्र धार्मिक कथाएँ सुनाने लगा।
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किंतु सन्यासी का मन चूहे को भगाने में लगा था। मेहमान मित्र ने देखा कि सन्यासी उसकी बात पर पूरा ध्यान नहीं दे रहा है। उसे क्रोध आ गया। उसने सन्यासी से कहा- तू मेरे साथ प्रेमपूर्वक बातचीत नहीं कर रहा है। तेरे अंदर अहंकार पैदा हो गया है। इस पर सन्यासी ने कहा-ऐसा मत कहो। तुम मेरे परमप्रिय मित्र हो।

मैं तो चूहे को भगाने में लगा हुआ था। वह बार-बार उछलकर मेरे भिक्षा-पात्र तक पहुँच जाता है। मित्र ने कहा- आश्चयर्य है कि तुम एक चूहे को नहीं समझ पाए। यह चूहा अवश्य ही धन-संपन्न है। इसे धन की ही गर्मी है। तुम्हें चूहे के आने-जाने का मार्ग मालूम होगा। तुम्हारे पास जमीन खोदने का कोई औजार हो तो निकालो।’ सन्यासी ने कहा-‘मेरे पास लोहे की एक कुदाल है।’

दोनों मिलकर चूहे के बिल तक पहुँच गए और बिल खोदकर उसकी सारी धन-दौलत निकाल लाए। सन्यासी के मित्र ने प्रसन्न होकर कहा- ‘अब तुम निश्चित होकर सोओ। वह दुष्ट चूहा इस धन के बल पर ही इतनी ऊँची छलाँग लगाया करता था। धन न रहने से उसका बल टूट गया है। अब कोशिश करने पर भी वह तुम्हारे भिक्षा-पात्र तक नहीं पहुँच पाएगा।

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English story sinhasan Battisi...
Story-story in hind Greed is the cause of destruction Story-story in hind  Greed is the cause of destruction Reviewed by S.K. Kumar on June 16, 2020 Rating: 5

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